भौतिक चीजों की सम्भाल

 

       माताजी, मैं अपनी चीझें बार-बार क्यों खोता रहता हूं ?

 

क्योंकि तुम चीजों को काफी हद तक अपनी चेतना में नहीं रखते ।

 

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        चीजों को व्यर्थ में नष्ट करने की जगह उनका उपयोग करना हमेशा कहीं अच्छा होता है ।

 

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        यह एक अज्ञान की क्रिया थी ।

 

        अगर उचित भाव से लिये जाते तो पर्दे अभी और दो या तीन वर्ष चल सकते थे । गलत भाव से लिये जाने पर वे एक महीने में ही चिन्दियां बन सकते थे । चीजों में भी उनकी अपनी चेतना होती है ।

 

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        भगवान् चीजों में भी हैं इसलिए उनको सावधानी से बरतना चाहिये ।

१७ मई, १९५५

 

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       तुम जिन भौतिक चीजों का उपयोग करते हो उनको ठीक से सम्भाल कर न रखना निश्चेतना और अज्ञान का चिह्न है ।

 

       अगर तुम भौतिक चीज की--वह चाहे कुछ भी क्यों न हो--देखभाल नहीं करते तो तुम्हें उसका उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है ।

 

        तुम्हें उसकी देखभाल इसलिए नहीं करनी चाहिये कि तुम उससे आसक्त हो बल्कि इसलिए कि वह भी भागवत चेतना के कुछ अंश को अभिव्यक्त करती है ।

 

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