|
भौतिक चीजों की सम्भाल
माताजी, मैं अपनी चीझें बार-बार क्यों खोता रहता हूं ?
क्योंकि तुम चीजों को काफी हद तक अपनी चेतना में नहीं रखते ।
*
चीजों को व्यर्थ में नष्ट करने की जगह उनका उपयोग करना हमेशा कहीं अच्छा होता है ।
*
यह एक अज्ञान की क्रिया थी ।
अगर उचित भाव से लिये जाते तो पर्दे अभी और दो या तीन वर्ष चल सकते थे । गलत भाव से लिये जाने पर वे एक महीने में ही चिन्दियां बन सकते थे । चीजों में भी उनकी अपनी चेतना होती है ।
*
भगवान् चीजों में भी हैं इसलिए उनको सावधानी से बरतना चाहिये । १७ मई, १९५५
* तुम जिन भौतिक चीजों का उपयोग करते हो उनको ठीक से सम्भाल कर न रखना निश्चेतना और अज्ञान का चिह्न है ।
अगर तुम भौतिक चीज की--वह चाहे कुछ भी क्यों न हो--देखभाल नहीं करते तो तुम्हें उसका उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है ।
तुम्हें उसकी देखभाल इसलिए नहीं करनी चाहिये कि तुम उससे आसक्त हो बल्कि इसलिए कि वह भी भागवत चेतना के कुछ अंश को अभिव्यक्त करती है ।
३५४ |